आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ऐ आफ़्ताब हादी-ए-कू-ए-निगार हो
आए भला कभी तो हमारे भी काम दिन
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
लोग कहते हैं कि फिर फ़स्ल-ए-बहार आती है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है
ये निशान-ए-शबाब बाक़ी है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हम गए थे उस से करते शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
मुस्कुरा कर उस को देखा सब गिला जाता रहा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी
हमें दो दिन के बहलाने को उम्र-ए-बे-मदार आई
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
हवस हम पार होएँ क्यूँकि दरिया-ए-मोहब्बत से
क़ज़ा ने बादबान-ए-कशती-ए-तदबीर को तोड़ा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
हम खींच वहीं क़श्क़ा ज़ुन्नार पहन निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस