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मिर्ज़ा अज़फ़री शायरी | शाही शायरी

मिर्ज़ा अज़फ़री शेर

26 शेर

जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
करो जो चाहो हम किस बात से इकराह रखते हैं

मिर्ज़ा अज़फ़री




ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
उस का नक़्शा धियान में कुछ है

मिर्ज़ा अज़फ़री




हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे

मिर्ज़ा अज़फ़री




हम फ़रामोश की फ़रामोशी
और तुम याद उम्र भर भूले

मिर्ज़ा अज़फ़री




है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू इक दम में बिछड़ जाता है मुझ से

मिर्ज़ा अज़फ़री




दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
पाक कर डाल बखेड़ा ये सभी झंझट का

मिर्ज़ा अज़फ़री




धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
मर भी जाऊँ तो कफ़न देख के काही देना

मिर्ज़ा अज़फ़री




बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
जिस को दुनिया से इलाक़ा नहीं ग़मनाक नहीं

मिर्ज़ा अज़फ़री




बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
रोए जा और भी ऐ दीदा-ए-तर देखें तो

मिर्ज़ा अज़फ़री