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जावेद अख़्तर शायरी | शाही शायरी

जावेद अख़्तर शेर

43 शेर

आगही से मिली है तन्हाई
आ मिरी जान मुझ को धोका दे

जावेद अख़्तर




अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का

जावेद अख़्तर




अक़्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए

जावेद अख़्तर




बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का

जावेद अख़्तर




छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं

जावेद अख़्तर




डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

जावेद अख़्तर




धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना

जावेद अख़्तर




दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग

जावेद अख़्तर




एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं

जावेद अख़्तर