कसी हैं भब्तियाँ मस्जिद में रीश-ए-वाइज़ पर
कहीं न मेरी तबीअ'त ख़ुदा गवाह रुकी
हबीब मूसवी
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ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
वो मोहतसिब की सवारी फ़रेब-ए-राह रुकी
हबीब मूसवी
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किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
जब बढ़ी दिल से तो आफ़ाक़ में फैली तशवीश
हबीब मूसवी
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