गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
दुनिया में कोई घर न रहा है न रहेगा
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
वो फ़राग़त तमाम रखता है
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
संग-ओ-शीशे को किया है मैं हुनर से पैवंद
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
गरेबाँ फट चुका कुइ दम में अब नौबत ही सीने की
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
और रब्त जिसे कुफ़्र से है या'नी बरहमन
कहता है कि हरगिज़ मिरा ज़ुन्नार न टूटे
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
रो रो के डुबा दूँगा कभी आ गई गर मौज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
अदा को तिरी मेरा जी जानता है
हरीफ़ अपना हर कोई पहचानता है
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
अबस घर से अपने निकाले है तू
भला हम तुझे छोड़ कर जाएँगे
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी