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फ़ना निज़ामी कानपुरी शायरी | शाही शायरी

फ़ना निज़ामी कानपुरी शेर

35 शेर

अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है

फ़ना निज़ामी कानपुरी




आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन
किस को ख़बर थी इतना बुरा मान जाएगा

फ़ना निज़ामी कानपुरी




ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
हसरत भी रहे बाक़ी अरमाँ भी निकल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी




बे-तकल्लुफ़ वो औरों से हैं
नाज़ उठाने को हम रह गए

फ़ना निज़ामी कानपुरी




दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
घर को लगा के आग ये मेहमान जाएगा

फ़ना निज़ामी कानपुरी




दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन
इंसान की तलाश में इंसान जाएगा

फ़ना निज़ामी कानपुरी




दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी




ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
छोड़ आए आशियाँ जलता हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी




ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है
ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी