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दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते | शाही शायरी
duniya-e-tasawwur hum aabaad nahin karte

ग़ज़ल

दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते

वो जौर-ए-मुसलसल से बाज़ आ तो गए लेकिन
बे-दाद ये क्या कम है बे-दाद नहीं करते

साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर
अफ़सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते

कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते

सहरा से बहारों को ले आए चमन वाले
और अपने गुलिस्ताँ को आबाद नहीं करते