देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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दास्ताँ पूरी न होने पाई
ज़िंदगी ख़त्म हुई जाती है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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'बिस्मिल' बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर
इतने निडर न हो कि ख़ुदा का भी डर न हो
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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