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बिस्मिल अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

बिस्मिल अज़ीमाबादी शेर

21 शेर

देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम

बिस्मिल अज़ीमाबादी




दास्ताँ पूरी न होने पाई
ज़िंदगी ख़त्म हुई जाती है

बिस्मिल अज़ीमाबादी




'बिस्मिल' बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर
इतने निडर न हो कि ख़ुदा का भी डर न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी