रग-ए-हर-साज़ ये कहती है कि ऐ नग़्मा-तराज़
मुझ को इक सल्तनत-ए-सौत-ओ-सदा चाहिए थी
असलम अंसारी
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उड़ा है रफ़्ता रफ़्ता रंग तस्वीर-ए-मोहब्बत का
हुई है रस्म-ए-उल्फ़त बे-विक़ार आहिस्ता आहिस्ता
असलम अंसारी
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ज़रा सी बात पे क्या क्या फ़साना-साज़ी है
मैं ख़ुद भी चाहता कब था कि दास्ताँ न बने
असलम अंसारी
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