आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
आल-ए-अहमद सूरूर
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आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
लुत्फ़ में तिरे कहीं कोई कमी है साक़ी
आल-ए-अहमद सूरूर
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