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दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना | शाही शायरी
do pal ke hain ye sab mah o aKHtar na bhulna

ग़ज़ल

दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना

अजमल अजमली

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दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना
सूरज ग़ुरूब होने का मंज़र न भूलना

कितनी तवील क्यूँ न हो बातिल की ज़िंदगी
हर रात का है सुब्ह मुक़द्दर न भूलना

यादों के फूल घर से उठा कर चले तो हो
देखो इन्हें किसी जगह रख कर न भूलना

माँ ने लिखा है ख़त में जहाँ जाओ ख़ुश रहो
मुझ को भले न याद करो घर न भूलना

हक़ पर अगर चलोगे तो हर आड़े वक़्त में
तुम को पनाह देगी ये चादर न भूलना