अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
क़दम ज़मीन पर रक्खा था जिस ने डरते हुए
तारिक़ नईम
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
गिराँ जिस को समझता हूँ वो कम-क़ीमत निकलता है
तारिक़ नईम
खोल देते हैं पलट आने पे दरवाज़ा-ए-दिल
आने वाले का इरादा नहीं देखा जाता
तारिक़ नईम
जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
हज़ार आईने टूटे मिरे सँवरते हुए
तारिक़ नईम
बे-वज्ह न बदले थे मुसव्विर ने इरादे
मैं उस के ख़यालात में पहले भी कहीं था
तारिक़ नईम
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब रोए
तारिक़ नईम
अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
हम ऐसे लोग जो ख़ुद से कलाम करते हैं
तारिक़ नईम
अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं
बदल गए हैं मिरे दोस्तों के लहजे भी
तारिक़ नईम
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
अभी मुझ से मेरा मिज़ाज ही नहीं मिल रहा
तारिक़ नईम