दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा
from the storms of the seas the ship might well survive
but if the storm is in the ship, no shore can then arrive
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
बे-चेहरगी की भीड़ में गुम है मिरा वजूद
मैं ख़ुद को ढूँढता हूँ मुझे ख़द-ओ-ख़ाल दे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
अर्ज़-ए-तलब पर उस की चुप से ज़ाहिर है इंकार मगर
शायद वो कुछ सोच रहा हो ऐसा भी हो सकता है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनिया में
कहीं हो जलता मकाँ अपना घर लगे है मुझे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद