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अज़हर फ़राग़ शायरी | शाही शायरी

अज़हर फ़राग़ शेर

39 शेर

ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
समय को रेल की पटरी के साथ चलने दिया

अज़हर फ़राग़




ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
लोग आसान समझ लेते हैं आसानी को

अज़हर फ़राग़




एक होने की क़स्में खाई जाएँ
और आख़िर में कुछ दिया लिया जाए

अज़हर फ़राग़




अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है
और किसी पर हँसते हँसते ख़ुद पर रोना आ जाता है

अज़हर फ़राग़




ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
फूल भेजवाने की गुंजाइश न हो

अज़हर फ़राग़




बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
जो सर क़लम नहीं करता ज़बान खींचता है

अज़हर फ़राग़




बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
वगर्ना अपना तो शहर भर में मकान ताले से जाना जाए

अज़हर फ़राग़




बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
दिल इस लिए भी ख़ज़ाना शुमार होने लगा

अज़हर फ़राग़




बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
ज़रा भी रंज नहीं है तुझे जुदाई का

अज़हर फ़राग़