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अम्बर बहराईची शायरी | शाही शायरी

अम्बर बहराईची शेर

18 शेर

आम के पेड़ों के सारे फल सुनहरे हो गए
इस बरस भी रास्ता क्यूँ रो रहा था देखते

अम्बर बहराईची




बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
घर लौटा तो पल भर में ही टूटा था

अम्बर बहराईची




चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं
अब जीने के ढंग बड़े ही महँगे हैं

अम्बर बहराईची




एक साहिर कभी गुज़रा था इधर से 'अम्बर'
जा-ए-हैरत कि सभी उस के असर में हैं अभी

अम्बर बहराईची




एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़
आसमाँ-दर-आसमाँ-दर-आसमाँ क्यूँ रत-जगे हैं

अम्बर बहराईची




गए थे हम भी बहर की तहों में झूमते हुए
हर एक सीप के लबों में सिर्फ़ रेगज़ार था

अम्बर बहराईची




हम पी भी गए और सलामत भी हैं 'अम्बर'
पानी की हर इक बूँद में हीरे की कनी थी

अम्बर बहराईची




हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
ये और बात कि वो ख़ुद भी एक दरिया था

अम्बर बहराईची




हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने
अश्कों से हर इक बर्ग को भरना था हमें भी

अम्बर बहराईची