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अख्तर शुमार शायरी | शाही शायरी

अख्तर शुमार शेर

11 शेर

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

अख्तर शुमार




अभी सफ़र में कोई मोड़ ही नहीं आया
निकल गया है ये चुप-चाप दास्तान से कौन

अख्तर शुमार




मैं घर को फूँक रहा था बड़े यक़ीन के साथ
कि तेरी राह में पहला क़दम उठाना था

अख्तर शुमार




मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

अख्तर शुमार




मैं ज़िंदगी के सफ़र में था मश्ग़ला उस का
वो ढूँड ढूँड के मुझ को गँवा दिया करता

अख्तर शुमार




मेरी रुस्वाई अगर साथ न देती मेरा
यूँ सर-ए-बज़्म मैं इज़्ज़त से निकलता कैसे

अख्तर शुमार




मिरी निगाह की वुसअत भी इस में शामिल कर
मिरी ज़मीन पे तेरा ये आसमाँ कम है

अख्तर शुमार




मुद्दतों में आज दिल ने फ़ैसला आख़िर दिया
ख़ूब-सूरत ही सही लेकिन ये दुनिया झूट है

अख्तर शुमार




पहाड़ भाँप रहा था मिरे इरादे को
वो इस लिए भी कि तेशा मुझे उठाना था

अख्तर शुमार