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ऐतबार साजिद शायरी | शाही शायरी

ऐतबार साजिद शेर

31 शेर

अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे

ऐतबार साजिद




अजब नशा है तिरे क़ुर्ब में कि जी चाहे
ये ज़िंदगी तिरी आग़ोश में गुज़र जाए

ऐतबार साजिद




बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
कुछ तो गर्द-ए-सफ़र से भाँपा कुछ आँखों से जान लिया

ऐतबार साजिद




भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
आ मिरे दिल मिरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें

ऐतबार साजिद




छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
लोग ज़िंदा हैं अजब सूरत-ए-हालात के साथ

ऐतबार साजिद




डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया

ऐतबार साजिद




दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
शायद उस के लौट आने का कुछ इम्कान अभी बाक़ी है

ऐतबार साजिद




ग़ज़ल फ़ज़ा भी ढूँडती है अपने ख़ास रंग की
हमारा मसअला फ़क़त क़लम दवात ही नहीं

ऐतबार साजिद




गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ

ऐतबार साजिद