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अहमद राही शायरी | शाही शायरी

अहमद राही शेर

17 शेर

अब इस के तसव्वुर से भी झुकने लगीं आँखें
नज़राना दिया है जिसे मैं ने दिल ओ जाँ का

अहमद राही




अब न काबा की तमन्ना न किसी बुत की हवस
अब तो ज़िंदा हूँ किसी मरकज़-ए-इंसाँ के लिए

अहमद राही




दर्द की बात किसी हँसती हुई महफ़िल में
जैसे कह दे किसी तुर्बत पे लतीफ़ा कोई

अहमद राही




दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा
दर्द पहलू से जुदा हो के कहाँ जाएगा

अहमद राही




दिल से दिल नज़रों से नज़रों के उलझने का समाँ
जैसे सहराओं में नींद आई हो दीवानों को

अहमद राही




दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
तू मिरी तमन्ना है मैं तिरा तमाशा हूँ

अहमद राही




हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस ने
जो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया

अहमद राही




जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में
रास्ता रोके तिरी याद खड़ी होती है

अहमद राही




कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई

अहमद राही