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अहमद फ़राज़ शायरी | शाही शायरी

अहमद फ़राज़ शेर

167 शेर

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

अहमद फ़राज़




आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें

the acts for which today I've been crucified around
if prescribed tomorrow, then why should it astound

अहमद फ़राज़




आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

अहमद फ़राज़




आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो

अहमद फ़राज़




अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

अहमद फ़राज़




अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए

अहमद फ़राज़




अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

should we now be parted, in dreams we might be found
like dried flowers found in books, fragile, fraying browned

अहमद फ़राज़




अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ

my heart is optimistic yet, its hopes are still alive
come to snuff it out, let not this final flame survive

अहमद फ़राज़




अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ

अहमद फ़राज़