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क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का | शाही शायरी
kya ishq ek zindagi-e-mustaar ka

नज़्म

क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का

अल्लामा इक़बाल

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क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का
क्या इश्क़ पाएदार से ना-पाएदार का

वो इश्क़ जिस की शम्अ' बुझा दे अजल की फूँक
उस में मज़ा नहीं तपिश ओ इंतिज़ार का

मेरी बिसात क्या है तब-ओ-ताब-ए-यक-नफ़्स
शो'ला से बे-महल है उलझना शरार का

कर पहले मुझ को ज़िंदगी-ए-जावेदाँ अता
फिर ज़ौक़ ओ शौक़ देख दिल-ए-बे-क़रार का

काँटा वो दे कि जिस की खटक ला-ज़वाल हो
या-रब वो दर्द जिस की कसक ला-ज़वाल हो