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फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं | शाही शायरी
farishte aadam ko jannat se ruKHsat karte hain

नज़्म

फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं

अल्लामा इक़बाल

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अता हुई है तुझे रोज़ ओ शब की बेताबी
ख़बर नहीं कि तू ख़ाकी है या कि सीमाबी!

सुना है ख़ाक से तेरी नुमूद है लेकिन
तिरी सरिश्त में है कौकबी ओ महताबी!

जमाल अपना अगर ख़्वाब में भी तू देखे
हज़ार होश से ख़ुश-तर तिरी शकर-ख़्वाबी

गिराँ-बहा है तिरा गिर्या-ए-सहर-गाही
इसी से है तिरे नख़्ल-ए-कुहन की शादाबी!

तिरी नवा से है बे-पर्दा ज़िंदगी का ज़मीर
कि तेरे साज़ की फ़ितरत ने की है मिज़्राबी!