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दरिया-ए-ख़ूँ | शाही शायरी
dariya-e-KHun

नज़्म

दरिया-ए-ख़ूँ

शहरयार

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पानी की लय पे गाता
इक कश्ती-ए-हवा में

आया था रात कोई
सारे बदन पे उस के

लिपटे हुए थे शोले
होंटों से ओस बूँदें

पैहम गिरा रहा था
सरगोशियों के बादल

छाए हुए थे हर-सू
दरिया-ए-ख़ूँ रगों में

बे-ताब हो रहा था
मैं हो रहा था पागल!