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चुपके से इधर आ जाओ | शाही शायरी
chupke se idhar aa jao

नज़्म

चुपके से इधर आ जाओ

शहरयार

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दरवाज़ा-ए-जाँ से हो कर
चुपके से इधर आ जाओ

इस बर्फ़ भरी बोरी को
पीछे की तरफ़ सरकाओ

हर घाव पे बोसे छिड़को
हर ज़ख़्म को तुम सहलाओ

मैं तारों की इस शब को
तक़्सीम करूँ यूँ सब को

जागीर हो जैसे मेरी
ये अर्ज़ न तुम ठुकराओ

चुपके से इधर आ जाओ