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बस एक अंदाज़ा | शाही शायरी
bas ek andaza

नज़्म

बस एक अंदाज़ा

जौन एलिया

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बरस गुज़रे तुम्हें सोए हुए
उठ जाओ सुनती हो अब उठ जाओ

मैं आया हूँ
मैं अंदाज़े से समझा हूँ

यहाँ सोई हुई हो तुम
यहाँ रू-ए-ज़मीं के इस मक़ाम-ए-आसमानी-तर की हद में

बाद-हा-ए-तुंद ने
मेरे लिए बस एक अंदाज़ा ही छोड़ा है!