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यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई | शाही शायरी
yahi achchha hai jo is tarah miTae koi

ग़ज़ल

यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई

आले रज़ा रज़ा

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यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई
आप भी फिर मुझे ढूँडे तो न पाए कोई

कौंदती बर्क़ न देती हो जहाँ फ़ुर्सत-ए-दीद
ताब क्या है जो वहाँ आँख उठाए कोई

बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
दिल तड़प जाए मगर लब न हिलाए कोई