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तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या | शाही शायरी
tumhein hum chahte to hain magar kya

ग़ज़ल

तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या

बेख़ुद देहलवी

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तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या
मोहब्बत क्या मोहब्बत का असर क्या

वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
कहा था तुम ने इस से पेशतर क्या

हज़ारों बार बिगड़े रात भर में
निभेगी तुम से अपनी उम्र भर क्या

नज़र मिलती नहीं उठती नहीं आँख
कोई पूछे कि है मद्द-ए-नज़र क्या

शिकायत सुन के वो 'बेख़ुद' से बोले
तुझे ऐ बे-ख़बर मेरी ख़बर क्या