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सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं | शाही शायरी
sine mein un ke jalwe chhupae hue to hain

ग़ज़ल

सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

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सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं
हम अपने दिल को तूर बनाए हुए तो हैं

तासीर-ए-जज़्ब-ए-शौक़ दिखाए हुए तो हैं
हम तेरा हर हिजाब उठाए हुए तो हैं

हाँ क्या हुआ वो हौसला-ए-दीद-ए-अहल-ए-दिल
देखो ना वो नक़ाब उठाए हुए तो हैं

तेरे गुनाहगार गुनाहगार ही सही
तेरे करम की आस लगाए हुए तो हैं

अल्लाह-री कामयाबी-ए-आवारगान-ए-इश्क़
ख़ुद गुम हुए तो क्या उसे पाए हुए तो हैं

यूँ तुझ को इख़्तियार है तासीर दे न दे
दस्त-ए-दुआ हम आज उठाए हुए तो हैं

ज़िक्र उन का गर ज़बाँ पे नहीं है तो क्या हुआ
अब तक नफ़स नफ़स में समाए हुए तो हैं

मिटते हुओं को देख के क्यूँ रो न दें 'मजाज़'
आख़िर किसी के हम भी मिटाए हुए तो हैं