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शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया | शाही शायरी
shabnam ko ret phul ko kanTa bana diya

ग़ज़ल

शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया

अहमद मुश्ताक़

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शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया
हम ने तो अपने बाग़ को सहरा बना दिया

इस ऊँच नीच पर तो ठहरते नहीं थे पाँव
किस दस्त-ए-शौक़ ने इसे दुनिया बना दिया

किन मुट्ठियों ने बीज बिखेरे ज़मीन पर
किन बारिशों ने इस को तमाशा बना दिया

सैराब कर दिया तिरी मौज-ए-ख़िराम ने
रक्खा जहाँ क़दम वहाँ दरिया बना दिया

इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया

पूछे अगर कोई तो उसे क्या बताऊँ मैं
दिल क्या था, तेरे ग़म ने इसे क्या बना दिया