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सब्र हर बार इख़्तियार किया | शाही शायरी
sabr har bar iKHtiyar kiya

ग़ज़ल

सब्र हर बार इख़्तियार किया

गुलज़ार

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सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया

आदतन तुम ने कर दिए वा'दे
आदतन हम ने ए'तिबार किया

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया

फिर न माँगेंगे ज़िंदगी या-रब
ये गुनह हम ने एक बार किया