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सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है | शाही शायरी
sara aalam gosh-bar-awaz hai

ग़ज़ल

सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है

असरार-उल-हक़ मजाज़

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सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है
आज किन हाथों में दिल का साज़ है

तू जहाँ है ज़मज़मा-पर्दाज़ है
दिल जहाँ है गोश-बर-आवाज़ है

हाँ ज़रा जुरअत दिखा ऐ जज़्ब-ए-दिल
हुस्न को पर्दे पे अपने नाज़ है

हम-नशीं दिल की हक़ीक़त क्या कहूँ
सोज़ में डूबा हुआ इक साज़ है

आप की मख़मूर आँखों की क़सम
मेरी मय-ख़्वारी अभी तक राज़ है

हँस दिए वो मेरे रोने पर मगर
उन के हँस देने में भी इक राज़ है

छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है

हुस्न को नाहक़ पशेमाँ कर दिया
ऐ जुनूँ ये भी कोई अंदाज़ है

सारी महफ़िल जिस पे झूम उट्ठी 'मजाज़'
वो तो आवाज़-ए-शिकस्त-ए-साज़ है