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रब्त हर बज़्म से टूटे तिरी महफ़िल के सिवा | शाही शायरी
rabt har bazm se TuTe teri mahfil ke siwa

ग़ज़ल

रब्त हर बज़्म से टूटे तिरी महफ़िल के सिवा

बशर नवाज़

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रब्त हर बज़्म से टूटे तिरी महफ़िल के सिवा
रंजिशें सब की गवारा हैं तिरे दिल के सिवा

ऐसे पहलू में समा जाओ कि जैसे दिल हो
चैन मिलता है कहाँ मौज को साहिल के सिवा

चीख़ टकरा के पहाड़ों से पलट आती है
कौन सहता है भला वार मुक़ाबिल के सिवा

ख़ुश्क पत्तों से छुड़ा लेती हैं शाख़ें दामन
किस ने यादों से निभाई है यहाँ दिल के सिवा

एक बिछड़े हुए साए के तआ'क़ुब में 'बशर'
सभी राहों पे गए हम रह-ए-मंज़िल के सिवा