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रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना | शाही शायरी
raste sikhate hain kis se kya alag rakhna

ग़ज़ल

रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना

आदिल रज़ा मंसूरी

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रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना
मंज़िलें अलग रखना क़ाफ़िला अलग रखना

बअ'द एक मुद्दत के लौट कर वो आया है
आज तो कहानी से हादिसा अलग रखना

जिस से हम ने सीखा था साथ साथ चलना है
अब वही बताता है नक़्श-ए-पा अलग रखना

कूज़ा-गर ने जाने क्यूँ आदमी बनाया है
उस को सब खिलौनों से तुम ज़रा अलग रखना

लौट कर तो आए हो तजरबों की सूरत है
पर मिरी कहानी से फ़ल्सफ़ा अलग रखना

तुम तो ख़ूब वाक़िफ़ हो अब तुम्ही बताओ ना
किस में क्या मिलाना है किस से क्या अलग रखना

ख़्वाहिशों का ख़म्याज़ा ख़्वाब क्यूँ भरें 'आदिल'
आज मेरी आँखों से रत-जगा अलग रखना