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क़स्र वीरान हुआ जाता है | शाही शायरी
qasr viran hua jata hai

ग़ज़ल

क़स्र वीरान हुआ जाता है

शकील बदायुनी

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क़स्र वीरान हुआ जाता है
दिल परेशान हुआ जाता है

हरम ओ दैर के जल्वों की क़सम
कुफ़्र ईमान हुआ जाता है

ताब-ए-नज़्ज़ारा इलाही तौबा
जल्वा हैरान हुआ जाता है

नाला आग़ोश-ए-असर तक आ कर
ख़ुद पशेमान हुआ जाता है

बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर
पी के इंसान हुआ जाता है

दिल है आमादा-ए-तकमील-ए-नशात
ग़म का सामान हुआ जाता है

कुछ नहीं हस्ती-ए-परवाना मगर
बज़्म की जान हुआ जाता है

अल्लाह अल्लाह कि उन्हीं का परतव
उन पे क़ुर्बान हुआ जाता है

हर वरक़ शरह-ए-मोहब्बत का 'शकील'
अपना दीवान हुआ जाता है