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नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है | शाही शायरी
nafas ke loch mein ram hi nahin kuchh aur bhi hai

ग़ज़ल

नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है

साहिर लुधियानवी

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नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है
हयात साग़र-ए-सम ही नहीं कुछ और भी है

तिरी निगाह मिरे ग़म की पासदार सही
मिरी निगाह में ग़म ही नहीं कुछ और भी है

मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ'तों से न गिर
बुलंद बाम-ए-हरम ही नहीं कुछ और भी है

ये इज्तिनाब है अक्स-ए-शुऊर-ए-महबूबी
ये एहतियात-ए-सितम ही नहीं कुछ और भी है

इधर भी एक उचटती नज़र कि दुनिया में
फ़रोग़-ए-महफ़िल-ए-जम ही नहीं कुछ और भी है

नए जहान बसाए हैं फ़िक्र-ए-आदम ने
अब इस ज़मीं पे इरम ही नहीं कुछ और भी है

मिरे शुऊ'र को आवारा कर दिया जिस ने
वो मर्ग-ए-शादी-ओ-ग़म ही नहीं कुछ और भी है