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मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके | शाही शायरी
miTe wo dil jo tere gham ko le ke chal na sake

ग़ज़ल

मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके

वसीम बरेलवी

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मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
वही चराग़ बुझाए गए जो जल न सके

हम इस लिए नई दुनिया के साथ चल न सके
कि जैसे रंग ये बदली है हम बदल न सके

मैं उन चराग़ों की उम्र-ए-वफ़ा को रोता हूँ
जो एक शब भी मिरे दिल के साथ जल न सके

मैं वो मुसाफ़िर-ए-ग़मगीं हूँ जिस के साथ 'वसीम'
ख़िज़ाँ के दौर से भी कुछ दूर चल के चल न सके