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मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर | शाही शायरी
mehrbani hai ayaadat ko jo aate hain magar

ग़ज़ल

मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर

अकबर इलाहाबादी

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मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
किस तरह उन से हमारा हाल देखा जाएगा

दफ़्तर-ए-दुनिया उलट जाएगा बातिल यक-क़लम
ज़र्रा ज़र्रा सब का असली हाल देखा जाएगा

आफ़िशियल आमाल-नामा की न होगी कुछ सनद
हश्र में तो नामा-ए-आमाल देखा जाएगा

बच रहे ताऊन से तो अहल-ए-ग़फ़लत बोल उठे
अब तो मोहलत है फिर अगले साल देखा जाएगा

तह करो साहब नसब-नामी वो वक़्त आया है अब
बे-असर होगी शराफ़त माल देखा जाएगा

रख क़दम साबित न छोड़ 'अकबर' सिरात-ए-मुस्तक़ीम
ख़ैर चल जाने दे उन की चाल देखा जाएगा