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कोई रुस्वाई है न शोहरत है | शाही शायरी
koi ruswai hai na shohrat hai

ग़ज़ल

कोई रुस्वाई है न शोहरत है

ख़ुर्शीद रब्बानी

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कोई रुस्वाई है न शोहरत है
ये मोहब्बत है या करामत है

शौक़ मेरा नहीं जुनूँ-अंगेज़
सो बयाबाँ को मुझ से वहशत है

रंग क्या क्या हैं ज़ेर-ए-बंद-ए-क़बा
दर-ओ-दीवार तक को हैरत है

वो तग़ाफ़ुल-शिआर क्या जाने
इश्क़ तो हुस्न की ज़रूरत है

मेरे ख़ुर्शीद ख़ुश-गुमान न हो
मुस्कुराना तो उस की आदत है