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कोई अटका हुआ है पल शायद | शाही शायरी
koi aTka hua hai pal shayad

ग़ज़ल

कोई अटका हुआ है पल शायद

गुलज़ार

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कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद

लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद
वो अकेले हैं आज-कल शायद

दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इस का कोई नहीं है हल शायद

जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम
उन से होता नहीं अमल शायद

आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद

राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद

चाँद डूबे तो चाँद ही निकले
आप के पास होगा हल शायद