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हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए | शाही शायरी
har haqiqat majaz ho jae

ग़ज़ल

हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए
काफ़िरों की नमाज़ हो जाए

दिल रहीन-ए-नियाज़ हो जाए
बेकसी कारसाज़ हो जाए

मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे
दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए

इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो
लब पे आए तो राज़ हो जाए

लुत्फ़ का इंतिज़ार करता हूँ
जौर ता हद्द-ए-नाज़ हो जाए

उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़'
काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए