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हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री | शाही शायरी
har ghaDi inqalab mein guzri

ग़ज़ल

हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री

फ़ानी बदायुनी

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हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री
ज़िंदगी किस अज़ाब में गुज़री

शौक़ था माना-ए-तजल्ली-ए-दोस्त
उन की शोख़ी हिजाब में गुज़री

करम-ए-बे-हिसाब चाहा था
सितम-ए-बे-हिसाब में गुज़री

वर्ना दुश्वार था सुकून-ए-हयात
ख़ैर से इज़्तिराब में गुज़री

राज़-ए-हस्ती की जुस्तुजू में रहे
रात ताबीर-ए-ख़्वाब में गुज़री

कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री

किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'
इस जहान-ए-ख़राब में गुज़री