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ग़ुबार-ए-दश्त-ए-यक्सानी से निकला | शाही शायरी
ghubar-e-dasht-e-yaksani se nikla

ग़ज़ल

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-यक्सानी से निकला

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर

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ग़ुबार-ए-दश्त-ए-यक्सानी से निकला
ये रस्ता मेरी बे-ध्यानी से निकला

न हम वहशत में अपने घर से निकले
न सहरा अपनी वीरानी से निकला

न निकला काम कोई ज़ब्त-ए-ग़म से
न अश्कों की फ़रावानी से निकला

न आँखें ही हुईं ग़रक़ाब-ए-दरिया
न कोई अक्स ही पानी से निकला

उधर निकली वो ख़ुश्बू शहर-ए-गुल से
इधर मैं बाग़-ए-वीरानी से निकला

हुआ ग़र्क़ाब शहर-ए-जाँ तो ये दिल
ये दरिया अपनी तुग़्यानी से निकला

जो निकला शाम-ए-दश्त-ए-कर्बला से
सितारा ख़ंदा-पेशानी से निकला