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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में | शाही शायरी
dil ki bisat kya thi nigah-e-jamal mein

ग़ज़ल

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

सीमाब अकबराबादी

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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में

दुनिया करे तलाश नया जाम-ए-जम कोई
उस की जगह नहीं मिरे जाम-ए-सिफ़ाल में

आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में

दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में

अहल-ए-चमन हमें न असीरों का तअन दें
वो ख़ुश हैं अपने हाल में अहम अपनी चाल में

'सीमाब' इज्तिहाद है हुस्न-ए-तलब मिरा
तरमीम चाहता हूँ मज़ाक़-ए-जमाल में