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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से | शाही शायरी
dekha hai zindagi ko kuchh itne qarib se

ग़ज़ल

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

साहिर लुधियानवी

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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

ऐ रूह-ए-अस्र जाग कहाँ सो रही है तू
आवाज़ दे रहे हैं पयम्बर सलीब से

इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार
बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से

हर गाम पर है मजमा-ए-उश्शाक़ मुंतज़िर
मक़्तल की राह मिलती है कू-ए-हबीब से

इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से