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बे-सबब क्यूँ तबाह होता है | शाही शायरी
be-sabab kyun tabah hota hai

ग़ज़ल

बे-सबब क्यूँ तबाह होता है

अब्दुल हमीद अदम

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बे-सबब क्यूँ तबाह होता है
फ़िक्र-ए-फ़र्दा गुनाह होता है

तुझ को क्या दूसरों के ऐबों से
क्यूँ अबस रू-सियाह होता है

मुझ को तन्हा न छोड़ कर जाओ
ये ख़ला बे-पनाह होता है

ज़क उसी से बहुत पहुँचती है
जो मिरा ख़ैर-ख़्वाह होता है

उस घड़ी उस से माँग लो सब कुछ
जब 'अदम' बादशाह होता है