EN اردو
बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया | शाही शायरी
bachpan ka daur ahd-e-jawani mein kho gaya

ग़ज़ल

बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया

अब्बास ताबिश

;

बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया
ये अम्र-ए-वाक़िआ' भी कहानी में खो गया

लहरों में कोई नक़्शा कहाँ पाएदार है
सूरज के बा'द चाँद भी पानी में खो गया

आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया

अब बस्तियाँ हैं किस के तआ'क़ुब में रात-दिन
दरिया तो आप अपनी रवानी में खो गया

'ताबिश' का क्या कहें कि वो ज़ोहरा-गुदाज़ शख़्स
आतिश-फ़िशाँ का फूल था पानी में खो गया