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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे | शाही शायरी
ab to KHushi ka gham hai na gham ki KHushi mujhe

ग़ज़ल

अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे

शकील बदायुनी

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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे

वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे

रोने पे अपने उन को भी अफ़्सुर्दा देख कर
यूँ बन रहा हूँ जैसे अब आई हँसी मुझे

यूँ दीजिए फ़रेब-ए-मोहब्बत कि उम्र भर
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे

रखना है तिश्ना-काम तो साक़ी बस इक नज़र
सैराब कर न दे मिरी तिश्ना-लबी मुझे

पाया है सब ने दिल मगर इस दिल के बावजूद
इक शय मिली है दिल में खटकती हुई मुझे

राज़ी हों या ख़फ़ा हों वो जो कुछ भी हों 'शकील'
हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे