अब नहीं सीने में मेरे जा-ए-दाग़
सोज़-ए-दिल से दाग़ है बाला-ए-दाग़
दिल जला आँखें जलीं जी जल गया
इश्क़ ने क्या क्या हमें दिखलाए दाग़
दिल जिगर जल कर हुए हैं दोनों एक
दरमियाँ आया है जब से पा-ए-दाग़
मुन्फ़इल हैं लाला ओ शम्अ' ओ चराग़
हम ने भी क्या आशिक़ी में खाए दाग़
वो नहीं अब 'मीर' जो छाती जले
खा गया सारे जिगर को हाए दाग़
ग़ज़ल
अब नहीं सीने में मेरे जा-ए-दाग़
मीर तक़ी मीर