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अब नहीं सीने में मेरे जा-ए-दाग़ | शाही शायरी
ab nahin sine mein mere ja-e-dagh

ग़ज़ल

अब नहीं सीने में मेरे जा-ए-दाग़

मीर तक़ी मीर

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अब नहीं सीने में मेरे जा-ए-दाग़
सोज़-ए-दिल से दाग़ है बाला-ए-दाग़

दिल जला आँखें जलीं जी जल गया
इश्क़ ने क्या क्या हमें दिखलाए दाग़

दिल जिगर जल कर हुए हैं दोनों एक
दरमियाँ आया है जब से पा-ए-दाग़

मुन्फ़इल हैं लाला ओ शम्अ' ओ चराग़
हम ने भी क्या आशिक़ी में खाए दाग़

वो नहीं अब 'मीर' जो छाती जले
खा गया सारे जिगर को हाए दाग़