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माई-काशी शायरी | शाही शायरी

माई-काशी

27 शेर

मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
आई है शीशा-ओ-साग़र की तलबगार घटा

आग़ा अकबराबादी




मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
हाथ में अपने अगर जाम लिया है तुम ने

आल-ए-अहमद सूरूर




मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
कोई ज़ोहरा-जबीं पीने पे जब मजबूर करता है

अब्दुल हमीद अदम




वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिए होते

अब्दुल हमीद अदम




ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
मैं कैसे बिन पिए ले लूँ ख़ुदा का नाम ऐ साक़ी

अब्दुल हमीद अदम




पी के जीते हैं जी के पीते हैं
हम को रग़बत है ऐसे जीने से

अल्ताफ़ मशहदी




ख़ुश्क बातों में कहाँ है शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी
वो तो पी कर ही मिलेगा जो मज़ा पीने में है

o priest where is the pleasure in this world when dry and sere
tis only when one drinks will then the joy truly appea

अर्श मलसियानी