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जन्नत शायरी | शाही शायरी

जन्नत

6 शेर

जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा

अहमद नदीम क़ासमी




ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

अल्लामा इक़बाल




कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी
सब वाइज़ों की बाक़ी रंगीं-बयानियाँ हैं

अल्ताफ़ हुसैन हाली




जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई

where virgins aged a million years reside
hopes for such a heaven why abide

दाग़ देहलवी




अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी

फ़ानी बदायुनी




गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है

जिगर मुरादाबादी