हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है
असरार-उल-हक़ मजाज़
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा
शिकस्त खा के वो पानी में ज़हर डाल आया
अज़हर इनायती
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मैं ज़ख़्म खा के गिरा था कि थाम उस ने लिया
मुआफ़ कर के मुझे इंतिक़ाम उस ने लिया
फ़ैसल अजमी
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ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
हसीब सोज़
तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की
किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से
हिमायत अली शाएर
ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे
मैं अपने हाथ के पत्थर से संगसार हुआ
इब्राहीम अश्क
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कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है
मीर तक़ी मीर
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